खुद के होने का वजुद अपनो की बीच तलाशते देखा है दफनाने के बाद अपना पलट के भी न देखता है सुबहा की मोहब्बत शाम होते होते दम तोडने लगती है हसीन है दुनिया फिर भी कुछ कमी सी लगती है क्यों रोता है हर कोई दुनिया में पहली सांस लेते हुए जीते हुए न समजा पर समजमें आता है आखरी सांस लेते हुए रोशनी की तलाश में अक्सर भुल जाते हैं अंधेरे को सांस तुटते ही पल भी नही लगता भुलाने के लिए अपनों को तलाश वजुद की