मनोव्यथा अदृश्य ही सही, बड़ी ज़ालिम है दोस्त, निराकार, निर्मल ये लहरें मनोभावों की, चंचल व बेहद नाज़ुक हैं दोस्त, उभरना है गर न पड़ना चक्करों में किसी की।— % & #rztask260 #rzलेखकसमूह#restzone PC : Unsplash #YourQuoteAndMine