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अब मुफ्त हवा नहीं मिलती, जीने श्वास भर ज़िन्दगी, धु

अब मुफ्त हवा नहीं मिलती,
जीने श्वास भर ज़िन्दगी,
धुंध ही धुंध काले धुएँ की,
फेफड़ों में घर करती
रात दिन..
वो तारा अब नज़र नहीं आता,
जो टिमटिमाने लगता था 
शाम की चाय संग,
नीलिमा दिखाई नहीं देती
अब खुले आकाश में,
हम मानव धरा पर ही बेहतर,
जंगल तो हथिया ही चुके हम,
अब हाथ पसारे परिंदों की मिल्कियत पर,
फैलाने अपने अवशेष जल थल के बाद 
अब खुले आकाश में..  YourQuote Didi
खुले आकाश में 

...

कविता में एक शब्द एक बिंदु की तरह होता है। जिस प्रकार एक बिंदु से कई रेखाएँ खींची जा सकती हैं और वो भी कई दिशाओं में उसी प्रकार एक शब्द से कई शब्द जुड़े होते हैं, जिनकी खोज करके हम एक पंक्ति को विभिन्न भावों से जोड़ सकते हैं। 

खुले आकाश में इस पंक्ति पर ग़ौर करें तो दो सामने के शब्द हैं
अब मुफ्त हवा नहीं मिलती,
जीने श्वास भर ज़िन्दगी,
धुंध ही धुंध काले धुएँ की,
फेफड़ों में घर करती
रात दिन..
वो तारा अब नज़र नहीं आता,
जो टिमटिमाने लगता था 
शाम की चाय संग,
नीलिमा दिखाई नहीं देती
अब खुले आकाश में,
हम मानव धरा पर ही बेहतर,
जंगल तो हथिया ही चुके हम,
अब हाथ पसारे परिंदों की मिल्कियत पर,
फैलाने अपने अवशेष जल थल के बाद 
अब खुले आकाश में..  YourQuote Didi
खुले आकाश में 

...

कविता में एक शब्द एक बिंदु की तरह होता है। जिस प्रकार एक बिंदु से कई रेखाएँ खींची जा सकती हैं और वो भी कई दिशाओं में उसी प्रकार एक शब्द से कई शब्द जुड़े होते हैं, जिनकी खोज करके हम एक पंक्ति को विभिन्न भावों से जोड़ सकते हैं। 

खुले आकाश में इस पंक्ति पर ग़ौर करें तो दो सामने के शब्द हैं
vibhakatare3699

Vibha Katare

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