रोटी कमाने ही तो आया था, मैंने किसी का कुछ नहीं चुराया था, तेरे शहर में एक छोटा सा बसेरा ही तो बसाया था, मैं तो अपना घर पालने की आस लेकर आया था, अब मुझे यह शहर रास नहीं आ रहा, यहाँ मेरा दम घुटा जा रहा , मैं घर पहुंचने को बेताब हुआ जा रहा, अब मुझे मेरा गांव बहुत याद आ रहा , जाने के पर्याप्त साधन नहीं जुटा पा रही सरकार, और हम पैदल पैदल चले जा रहे जुनून के साथ, न खाने की चिंता, ना आराम की जगह, चले जा रहे लेकर एक आस , अब घर पर ही लेंगे सुकून की साँस।। Shaivya #प्रवासी_मजदूर #मजबूरी #sadfeelings #मजबूरी