( पूरी रचना अनुशीर्षक में ) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ रचना थोड़ी सी लंबी है तो जरा साथ दीजिएगा, आशा करता हूँ कि आप निराश नहीं होंगे। . ॥ गंगा ॥ . यह समाज "भागीरथ" है जिसे तुम्हारे होने, पलने और खुश रहने का कारण बनना था मगर हर किसी ने तुम्हें अपने हिसाब से इस्तेमाल किया। किसी ने तुम्हारे अंदर ज़हर भरा, किसी ने छल किया तो कुछ ने पूजा भी है तुम्हें, मगर शायद ही किसी ने कभी तुमसे तुम्हारी इच्छा पूछी। और तुम,