बचपन में बस्तों का बोझ ढोते रहे, जवानी में रिश्तों का बोझ , रातों में ख्वाब बुनते रहे, दिन के उजालों में फटे दिल सिलते रहे। सारी उम्र कभी औरो को मनाने में , तो कभी रिझाने में। खुद को खुद से जुदा करते रहे। स्वांसों की चाबी जितनी भरी थी खुदा ने, बस खिलौनों की तरह कभी यहाँ, तो कभी वहाँ न जाने कहाँ कहाँ , सुकूँ की तलाश में भटकते रहे। हम नहीं हारे कभी जीवन की कशमकश में, कभी गिरते तो कभी सम्हलते, कभी टूटकर बिखरते , बस यूँ ही चलते रहे , यू ही चलते रहे। Kavita panot @cosmic power ©Kavita jayesh Panot #जीवन#शान्ति#तलाश#भटकाव