***गाँव के राजनीति *** हई देखी ए दादा! गाव के राजनीति, दोसरा के धन पर गड़वले बालो डीठि। अबर -दूबर के त ई समझतालो नींच , जे बा तनी काम के खियावे- पियावे वाला उहे बा हीत। गरीब बेचारा के शासन के हको पर फोटो संगे ले ता लो खींच, बुझाता आ बतवतो बा लो ,जैसे अपना से दे ता लोग भीख। एहू हको के पावे खातिर करावेके परता मूंह मीठ, जे ना कराई मूंह मीठ, हक त छोड़ी ओकरा से हो जाई तीत। का जाने विधाता भी उहनीयने के दे तारे आशीष, आगे उहे बढल जा तारे स, वाह रे! जगदीश। जे नईखे गांवे ओकरे सवांगी से मिलिके हड़पतारे जमीन, एही तरी सबके हड़प के कहातारे गाँव के अमीन। हई देखीं ए दादा! गाव के राजनीति, दोसरा के धन पर गड़वले बालो डीठि। ***नवीन कुमार पाठक *** #भोजपुरी कविता #