घर एक कोने में धूल फांकता एक बक्सा उसमें पुरानी किताबे, किताबों के पलटते पन्ने कहानी बयाँ करती हैं तेरी, वो खैरी (दुःख) के दिन पलटते पन्ने ताज़ा करती हैं। किस तरह बारिश में टपकते छप्पर में दिन गुज़ारे, नदी-नालों का पानी पीकर जिन्हे सींचा, वही कहते है हमारे लिए तुमने क्या किया। तन पर एक कपड़ा बरसो चला लेते थे। एक मटके पानी में कई दिन गुज़ारे, वही कहते है तुमने हमारे लिए क्या किया। क्रमशः........ ©BS NEGI तुमने क्या किया....