मैं अपने हाथ में सच लिखने का सामान लिये फिरता हूँ तेरे फ़साने को अपने लफ्ज़ में कहने का इल्ज़ाम लिये फिरता हूँ अपनी तबाही का गुनाहगार समझकर वो मुझसे राब्ता नहीं रखते कौन समझाये उन्हें मैं अपने शौक से तेरा किरदार लिये फिरता हूँ तुम्हारे सामने से नज़रों को चुराकर निकलना मेरा मैं फ़ना हो जाता हूँ जो गुनाह किया नहीं मैंने अपने सर पे उसका इश्तेहार लिये फिरता हूँ दिल सोचता है अक्सर मैं हर सच को उजागर कर दूँ लेकिन मैं अपनी रूह पर तेरे प्यार का एहसान लिये फिरता हूँ हमारे रूहे मरासिम को वो शायद कभी समझ ही नहीं पाए मैं अपनी पाक़ीज़ा मुहब्बत का ये इनाम लिये फिरता हूँ ©gautam_anand #अभिशप्त_वरदान #yqbaba #yqdidi #yqhindi #इल्ज़ाम