------!! बसंत बहार !!------ लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार। मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।। पतझड़ की हुई है भरमार, लो आ गई बसंत बहार। दिया बसंत ने पंख पसार, पड़ गई रंगों की फुहार।। है लाल हरा पीला तरुवर,है लग गई रंगों की अंबार। ये तो रंगो का है उपहार,है आगम होली का त्यौहार।। बढ़ रही मधुमास रफ्तार, तरूवर लिए यौवनाकार। चटकी कलियाँ हुई तैयार,भवरों को करती अंगीकार।। टपके फूलन रस चहुँओर, महके बाग बगीचा पोर। पशु पंक्षी हर्षित भें सुन्दर, धरती रूप धरी है मनहर।। ये मधुमास बना सुखकर, देता है नवजीवन का वर। सूरज की मद्धिम रफ्तार, करे सुहावन ऊष्म बौछार।। जब चलती है सुघर बयार, तन मन करती तार तार। लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार।। ✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज" ©राजेश कुशवाहा ------!! बसंत बहार !!------ लो आ गई बसंत बहार, प्यार का लेकर रंग हजार। मुस्काई हर पेड़ की डार,भर के प्यार का रंग हजार।। पतझड़ की हुई है भरमार, लो आ गई बसंत बहार। दिया बसंत ने पंख पसार, पड़ गई रंगों की फुहार।। है लाल हरा पीला तरुवर,है लग गई रंगों की अंबार। ये तो रंगो का है उपहार,है आगम होली का त्यौहार।।