वक्त का पाहिआ मासूमियत से लूढकाने दे जिंदगी अभी हमारी उम्र ही कितनी हुई है और तूने खेल ए हकीकत शुरू कर दिया अरे! कुछ सपने बुन लेने दे मैं दूगी तेरे सारे इम्तहान सब्र कर मुझे कुछ पल बचपन की गलियों में गुजारने दे मालूम है थोड़ी बड़ी हो गई हूँ लेकिन याद कर मैंने शरारते भी तो एक उम्र बाद की थी तेरा साथ मुझे खूब भाता है लेकिन कुछ पल मुझे महबूब की बाहों में भी गुजारने दे तेरे बगैर वजूद नहीं मेरा जानती हूँ लेकिन कुछ लम्हे ही तो माँग रही यादों को जुटाने के लिए #NojotoQuote