नीम के कड़वे फूल प्रातः की आई तरुणाई । शीतल बयार लेती अंगड़ाई । इत्र पवन में घोल रहे हैं मारे खुशी के डोल रहे हैं। ओस तन लपटी पगड़ंडी निद्रा से अलसायी धूल । जगाते थपकी देकर उनको नीम के कड़वे फूल । पछुआ ने है आँख दिखाया । उनको अब है गुस्सा आया। खुशबू अपनी समेट चले हैं। क्रोधागिन से आनन जले हैं। समय नहीं सदा सम रहता पर उनकी थी यह भूल । कुम्हला रहे हैं दिवा तपिश से नीम के कड़वे फूल । इमेज सोर्स -इंडियामार्ट नीम के कड़वे फूल प्रातः की आई तरुणाई । शीतल बयार लेती अंगड़ाई । इत्र पवन में घोल रहे हैं मारे खुशी के डोल रहे हैं।