आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर
दिल में बड़ी बैचैनियत सी है
न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार
नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है
न आस,किसी की न उम्मीद किसी से
फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है #ख़्वाब#सहूलियत