Nojoto: Largest Storytelling Platform

आज मेरी खुद से अनबन सी है न जाने कैसी ये उलझन सी ह

आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर
दिल में बड़ी  बैचैनियत सी है
न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार
नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है
न आस,किसी की न उम्मीद किसी से
फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है
कुछ आधे अधूरे ख्वाहिशों के घर
बनते बिगड़ते औरों की सहूलियत सी है
मन के अँधेरे में जो जल रही 
वह रोशनी मज़ार पर जलते शमा सी है
आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है


 आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर
दिल में बड़ी  बैचैनियत सी है
न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार
नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है
न आस,किसी की न उम्मीद किसी से
फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है
आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर
दिल में बड़ी  बैचैनियत सी है
न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार
नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है
न आस,किसी की न उम्मीद किसी से
फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है
कुछ आधे अधूरे ख्वाहिशों के घर
बनते बिगड़ते औरों की सहूलियत सी है
मन के अँधेरे में जो जल रही 
वह रोशनी मज़ार पर जलते शमा सी है
आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है


 आज मेरी खुद से अनबन सी है
न जाने कैसी ये उलझन सी है
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर
दिल में बड़ी  बैचैनियत सी है
न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार
नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है
न आस,किसी की न उम्मीद किसी से
फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है
anupamajha9949

Anupama Jha

New Creator

आज मेरी खुद से अनबन सी है न जाने कैसी ये उलझन सी है ख़ुद को ढूंढ रही हूँ अल्फ़ाज़ के बाहर दिल में बड़ी बैचैनियत सी है न चैन न करार न ख़ुद पर इख्तियार नहीं जानती क्यूँ छाई ये मनहूसियत सी है न आस,किसी की न उम्मीद किसी से फिर क्यूँ ये छाई तिश्नगी सी है #ख़्वाब #सहूलियत