न जाने कैसी दुविधा है
जाने न जाने मन क्यों
एक अनजानी सी बेचैनी
टूटे ख़्वाबों की किरचें
चुभती हैं पल हर पल
न जाने कितने लम्हें ऐसे हैं
जाने न जाने मन क्यों
सब फैलाव सा लगता है
सारे ज़ख्म अपने संग
मुस्कान का दामन लाते हैं
मैं ओझल हूँ मेरी नजरों से
फिर तू क्यों मुझमें दिखता है
न जाने कैसी दुविधा है
मन हर पल मन से कहता है
वक़्त का कायाकल्प कर दिया
अल्हड़पन को मौन दे दिया
गुमनामी को मेरा पता
बोल न किससे पूछ के दिया
अब सारी नकारात्मकता मुझमें है
तुझसे मिलकर कैसी खता कर दी
फिर किस हक से पूछुं
न जाने कैसी दुविधा है
जाने न जाने मन क्यों?
Richa
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#stay_home_stay_safe