रात की बात शहर में कोहरा पसरा है अलाव जला, एक हाथ में चाय और एक हाथ में अख़बार फ़ैला है मुझे गुजरी बेरण लम्बी रात की याद आ गई अकेला वीराने में पड़ा रहा था कैसे लंबी बेरण रात काट रहा था ज्यों - ज्यों ठंड बढ़ रही थी त्यों - त्यों याद प्रिया की बढ़ रही थी तब सर्दी सुल सी चुभने लग गई जब पथ निहारते निहारते जपकी आने लग गई उठा बर्फ़ से मुंह धोया, अपना सब्र नहीं खोया थोड़ा और इंतजार करते है अपने महबूब पर ऐतबार करते है मै ओस से ढकने लग गया बर्फ़ सा जमने लग गया मैने सोचा जमते - जमते हिम ना बन जाऊं ये सर्दी , पतजड़ ना बन जाये मै प्रिया से अलग जड़ा हुआ पता न बन जाऊ जहां में खड़ा था, लगा मुक्तिधाम न बन जाये तरु की परछाईं,लगा मुझे तुम आई तम बढ़ गया, बेरण रजनी छाई ऐतबार में तुम्हारे, सुन्दर रजनी को बेरण बनाया राह तकते- तकते सूरज निकल आया शिवराज खटीक #बेरण रात की बात