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नमस्कार! मैं महेश कुमार, हमारा देश भारत त्यौहारों

नमस्कार! मैं महेश कुमार,
हमारा देश भारत त्यौहारों का देश है। यहां हर रोज कोई न कोई उत्सव होता है, कुछ त्यौहार हमारे घरों में रोशनी भर देते हैं तो कुछ दिलों कि सारी गलतफहमियां दूर कर के पास ले आते हैं, कुछ से हमें वीर जवानों के शौर्य को जानने का मौका मिलता है तो कुछ से हमारी पहचान होती है और जिस  से हम सब कि पहचान होती है वो है हमारी राष्ट्र भाषा#हिंदी जिसके कुछ ही लफ्ज़ बोल देने भर से हमारी पहचान हर जगह हो जाती है,कि हैं हिन्दुस्तानी हैं।  फिर चाहे श्वामी विवेकानंद द्वारा सिकागो धर्म सम्मेलन में दिया गया हो संवाद हो या फिर मशहूर लेखक मुंसी प्रेम चंद के लिखे हुए उपन्यास और कहानियों के संग्रह। हर जगह हिंदी ने हमारा सिर गर्व से ऊंचा किया है, लेकिन ये हमारी बदकिस्मती ही कहीं जाएगी कि वही हिंदी आज अपने ही घर में अकेली पड़ गई है अकेली ही नहीं बल्कि अंजान भी हो गई है। जब आज सब देश अपने अपने देश की भाषाओं का प्रचार कर रहे हैं तब हम बस एक दिन # हिंदी दिवस के मौके पर इसे अपनी झूठी श्रद्धांजलि पेश कर देते हैं
और पूरे साल इसे किसी अपने बुजुर्ग जो कि अपने ही घर में एक कोने में पड़ा है उसकी तरफ ध्यान भी नहीं देते हैं।
हिंदी दिवस हर साल आता है लेकिन बस कैलेंडर में या कुछ देहात के छोटे मोटे कवियों कि संगोष्ठियों में लेकिन देश के बड़े बड़े साहित्य सम्मेलनों में तो हमारे लेखक हिंदी में तो हंसना भी पसंद नहीं करते बोलना तो दूर कि बात है।जो बड़े बड़े हिंदी के लेखक अपने को इसका सम्राट अशोक समझते हैं उनके बच्चे अंग्रेजी क्रिश्चियन स्कूलों में पढ़ते हैं। जिस तरह पूरे साल भूखे रहकर एक दिन में बहुत सारा खाना खाने से हम वो कमज़ोरी दूर नहीं कर सकते बल्कि बीमार होके और ज्यादा कमज़ोर हो सकते हैं , ठीक उसी प्रकार एक एक दिन हिन्दी वादी हो जाने से हिंदी की  खोई हुई अस्मिता वापिस नहीं आ पेयेगी। बल्कि आने वाली पीढ़ी इसे सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम समझ कर इसकी दुर्दशा का आनंद उठायेगी।
 धन्यवाद! #हिंदी_दिवस # एक कहानी हिंदी की ।
नमस्कार! मैं महेश कुमार,
हमारा देश भारत त्यौहारों का देश है। यहां हर रोज कोई न कोई उत्सव होता है, कुछ त्यौहार हमारे घरों में रोशनी भर देते हैं तो कुछ दिलों कि सारी गलतफहमियां दूर कर के पास ले आते हैं, कुछ से हमें वीर जवानों के शौर्य को जानने का मौका मिलता है तो कुछ से हमारी पहचान होती है और जिस  से हम सब कि पहचान होती है वो है हमारी राष्ट्र भाषा#हिंदी जिसके कुछ ही लफ्ज़ बोल देने भर से हमारी पहचान हर जगह हो जाती है,कि हैं हिन्दुस्तानी हैं।  फिर चाहे श्वामी विवेकानंद द्वारा सिकागो धर्म सम्मेलन में दिया गया हो संवाद हो या फिर मशहूर लेखक मुंसी प्रेम चंद के लिखे हुए उपन्यास और कहानियों के संग्रह। हर जगह हिंदी ने हमारा सिर गर्व से ऊंचा किया है, लेकिन ये हमारी बदकिस्मती ही कहीं जाएगी कि वही हिंदी आज अपने ही घर में अकेली पड़ गई है अकेली ही नहीं बल्कि अंजान भी हो गई है। जब आज सब देश अपने अपने देश की भाषाओं का प्रचार कर रहे हैं तब हम बस एक दिन # हिंदी दिवस के मौके पर इसे अपनी झूठी श्रद्धांजलि पेश कर देते हैं
और पूरे साल इसे किसी अपने बुजुर्ग जो कि अपने ही घर में एक कोने में पड़ा है उसकी तरफ ध्यान भी नहीं देते हैं।
हिंदी दिवस हर साल आता है लेकिन बस कैलेंडर में या कुछ देहात के छोटे मोटे कवियों कि संगोष्ठियों में लेकिन देश के बड़े बड़े साहित्य सम्मेलनों में तो हमारे लेखक हिंदी में तो हंसना भी पसंद नहीं करते बोलना तो दूर कि बात है।जो बड़े बड़े हिंदी के लेखक अपने को इसका सम्राट अशोक समझते हैं उनके बच्चे अंग्रेजी क्रिश्चियन स्कूलों में पढ़ते हैं। जिस तरह पूरे साल भूखे रहकर एक दिन में बहुत सारा खाना खाने से हम वो कमज़ोरी दूर नहीं कर सकते बल्कि बीमार होके और ज्यादा कमज़ोर हो सकते हैं , ठीक उसी प्रकार एक एक दिन हिन्दी वादी हो जाने से हिंदी की  खोई हुई अस्मिता वापिस नहीं आ पेयेगी। बल्कि आने वाली पीढ़ी इसे सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम समझ कर इसकी दुर्दशा का आनंद उठायेगी।
 धन्यवाद! #हिंदी_दिवस # एक कहानी हिंदी की ।
maheshyadav5058

Mahesh Yadav

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