कहीं दूर जब दिन ढ़ल जायें तेरी यादों का दीपक इस दिल में जल जायें... कारंवा जब गुजरे तेरी यादों का दिल की गलियों से खुदा करें उस वक्त हम बहुत शिद्दत से संभल जायें... तारीफ करूं उसकी उस चाँद से भी बढ़कर वो नजरें झुकाये और खुद में ही सहम जायें... नजरें जब उठाये वो एक शख्स को देखने को उस वक्त जमीं आसमां से मिलने को मचल जायें... जब भी देखूँ रौनक ए नूर को रोशनी नूर की इन आंखों में तस्वीर में बदल जायें... कहीं दूर जब दिन ढ़ल जायें बैठ जाऊं यादों के एक कोने में ताकि गिरने से पहले संभल जायें... ये जो चाँद को गुरूर है अपनी चांदनी पर देखें जो मेरे चाँद को शरमा के खुद के आँचल में समिट जायें... अश्क जो गिरे बंजर जमीं पर आंखों से उनकी तो बिन ये मौसम बरसात में बदल जायें... सारा जंहा देखें तुझे जिस वक्त भूल वह खुद को उस वक्त तुझमें ही मिल जायें... कहीं दूर जब दिन ढ़ल जायें भरी ज्येष्ठ की दोपहरी में मुरझाये ये फूल खिल जायें .. कहीं दूर जब दिन ढ़ल जायें 🌹🌹