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तसलीम नही उसे मेरे इश्क़ पर, मुझे बस उसका ही खुमार

तसलीम नही उसे मेरे इश्क़ पर,
मुझे बस उसका ही खुमार है।
मैं उसके हिस्से ज़रा भी नहीं,
और मुझमें बस वही शुमार हैं।
मै मुत्मईन,
उसकी ख़ामोशियों को सुनता हूँ।
यादों की साख से, 
तस्वीरों को चुनता हूँ।
वो जिसके एक दीदार को,
ये दिल बेकरार है।
मुझे वफ़ा उस बेदर्द से है, 
जिसे इश्क़, किसी और से बेशुमार है।
-रूद्र प्रताप सिंह 
(Plz Refer To Caption For Meaning) तसलीम*: भरोसा
मुत्मईन*: आराम
तसलीम नही उसे मेरे इश्क़ पर,
मुझे बस उसका ही खुमार है।
मैं उसके हिस्से ज़रा भी नहीं,
और मुझमें बस वही शुमार हैं।
मै मुत्मईन,
उसकी ख़ामोशियों को सुनता हूँ।
यादों की साख से, 
तस्वीरों को चुनता हूँ।
वो जिसके एक दीदार को,
ये दिल बेकरार है।
मुझे वफ़ा उस बेदर्द से है, 
जिसे इश्क़, किसी और से बेशुमार है।
-रूद्र प्रताप सिंह 
(Plz Refer To Caption For Meaning) तसलीम*: भरोसा
मुत्मईन*: आराम

तसलीम*: भरोसा मुत्मईन*: आराम