मन के घाव अब, शरीर पर उभरने लगे है... कुछ आँखों के नीचे, कुछ बालों पर दिखने लगे है !! नसीब भी देखों यारों मेरा... जिन्हें भुलाने में जमाने लगे है, वहीं हमें फिर याद क्यों आने लगे हैं? जिस अंधेरे को अपनी ख़ामोशी का नाम दिया... कमबख्त,आज वहीं अंधेरे मुस्कुराने लगे हैं!! "अंधेरे मुस्कुराने लगे है"