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“ज़िन्दगी का सफ़र” ग

              “ज़िन्दगी का सफ़र”
                ग़ज़ल –4

आसान हो कठिन हर राहों पर चलते देखा है।
मंज़िल को ढूँढते हुए ज़िन्दगी का सफ़र देखा है।

लोगों को कभी ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ते देखा है।
तो कभी समंदर के लहरों से टकरा साहिल पर आते देखा है।

सुबह सवेरे सभी के अपनी उम्मीदों से जुड़ते देखा है।
शाम होते ही उन उम्मीदों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है।

मंज़िल तक पहुँचने से पहले थक वापस लौटते देखा है।
ज़िन्दगी के अंधेरे को उजाले में बदलते क़रीब से मैंने देखा है। #कोराकाग़ज़ 
#kkकविसम्मेलन 
#kkकविसम्मेलन3 
#विशेषप्रतियोगिता 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#kkdrpanchhisingh
              “ज़िन्दगी का सफ़र”
                ग़ज़ल –4

आसान हो कठिन हर राहों पर चलते देखा है।
मंज़िल को ढूँढते हुए ज़िन्दगी का सफ़र देखा है।

लोगों को कभी ऊँची पहाड़ियों पर चढ़ते देखा है।
तो कभी समंदर के लहरों से टकरा साहिल पर आते देखा है।

सुबह सवेरे सभी के अपनी उम्मीदों से जुड़ते देखा है।
शाम होते ही उन उम्मीदों और ख्वाहिशों को टूटते देखा है।

मंज़िल तक पहुँचने से पहले थक वापस लौटते देखा है।
ज़िन्दगी के अंधेरे को उजाले में बदलते क़रीब से मैंने देखा है। #कोराकाग़ज़ 
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