Ishq mukammal by SARTHAK PANDEY
poet SARTHAK PANDEY
इश्क मुकम्मल करने को हमने क्या-क्या नहीं किया? ।
मगर इश्क ने साथ हमारे, अच्छा नहीं किया ||
किया तो बस इतना, कि वक्त किया बर्बाद | हमने गवा के अपने वक्त को, बिल्कुल अच्छा नहीं किया ||
करने को बाक़ी बाद में, जब कुछ भी ना बचा। कसम कि फ़िर हमनें कोई काम, इक अरसा नहीं किया।।