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आज फिर एक अंजान आवाज़ ने कानों पे दस्तक दी है, ना ज

आज फिर एक अंजान आवाज़ ने कानों पे दस्तक दी है,
ना जाने क्यूँ फिर एक अंजान डर ने दिल पे दस्तक दी है।

क्या है वो डर? क्यूँ है वो डर? कहीं कुछ हुआ तो नहीं था,
कहीं वो सालों पहले वाला डरावना साया ही तो नहीं था?

माना मैं उस वक़्त एक छोटा नन्हा सा बालक ही तो था,
पर फिर भी किसी को मुझसे खेलने का हक़ तो नहीं था।

दिनों दिन वो मुझे नोंचता रहा, कभी कचोंटता रहा था,
मेरे बाल शरीर पर वहशियत के निशां छोड़ता रहा था।

उसके लिये तो बस वो सब महज़ एक खेल भर रहा था,
पर मेरे मन में तो हमेशा के लिए एक दाग भर गया था।

आज कई बरस गुज़र गए हैं, वो निशां अब मिट गये है,
भूली-बिसरी यादों के जैसे, मेरे मन में घर कर गये है।

पर अब भी वो आवाज़ कभी मेरे सीने में गूँज जाती है,
फिर वो डरावनी सी हँसी, मेरे मन में दस्तक दे जाती है।

पर अब भी वो आवाज़ कभी मेरे सीने में गूँज जाती है,
फिर वो डरावनी सी हँसी, मेरे मन में दस्तक दे जाती है। ये वो दर्द है जो ना एक बच्चा बयां कर सकता है और ना छुपा सकता है। मुश्किल होता है ऐसे विषयों पर लिखना पर कभी कभी ये ज़रूरी भी हो जाता है ताकि शायद कोई ज़िन्दगी तो बच जाये।

अंजान 'इकराश़'

सुविधा के लिए दुबारा नीचे लिख दे रहा हूँ।


आज फिर एक अंजान आवाज़ ने कानों पे दस्तक दी है,
आज फिर एक अंजान आवाज़ ने कानों पे दस्तक दी है,
ना जाने क्यूँ फिर एक अंजान डर ने दिल पे दस्तक दी है।

क्या है वो डर? क्यूँ है वो डर? कहीं कुछ हुआ तो नहीं था,
कहीं वो सालों पहले वाला डरावना साया ही तो नहीं था?

माना मैं उस वक़्त एक छोटा नन्हा सा बालक ही तो था,
पर फिर भी किसी को मुझसे खेलने का हक़ तो नहीं था।

दिनों दिन वो मुझे नोंचता रहा, कभी कचोंटता रहा था,
मेरे बाल शरीर पर वहशियत के निशां छोड़ता रहा था।

उसके लिये तो बस वो सब महज़ एक खेल भर रहा था,
पर मेरे मन में तो हमेशा के लिए एक दाग भर गया था।

आज कई बरस गुज़र गए हैं, वो निशां अब मिट गये है,
भूली-बिसरी यादों के जैसे, मेरे मन में घर कर गये है।

पर अब भी वो आवाज़ कभी मेरे सीने में गूँज जाती है,
फिर वो डरावनी सी हँसी, मेरे मन में दस्तक दे जाती है।

पर अब भी वो आवाज़ कभी मेरे सीने में गूँज जाती है,
फिर वो डरावनी सी हँसी, मेरे मन में दस्तक दे जाती है। ये वो दर्द है जो ना एक बच्चा बयां कर सकता है और ना छुपा सकता है। मुश्किल होता है ऐसे विषयों पर लिखना पर कभी कभी ये ज़रूरी भी हो जाता है ताकि शायद कोई ज़िन्दगी तो बच जाये।

अंजान 'इकराश़'

सुविधा के लिए दुबारा नीचे लिख दे रहा हूँ।


आज फिर एक अंजान आवाज़ ने कानों पे दस्तक दी है,