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मैं शीर्षक एक कविता का, मैं रिक्त कलम एक लेखक कि,

मैं शीर्षक एक कविता का, 
मैं रिक्त कलम एक लेखक कि, 
खालीपन से भरा हुआ, 
महज सजावट का अब सामान हु मैं,
 मेरे लिखे वो पन्ने याद मुझे, 
जिनपर मेरा खालीपन इतराता था, 
इस रिक्ति पर अभिमान मुझे, 
ये मुझे बीते पलो मे ले जाता था,
 एक कोरा पन्ना बड़ा हटी है, 
हर दिन सामने खड़ा हो जाता है, 
जो ना देखु मे उसकी ओर तो मुझको ही वो डराता है, 
मैं क्या लिखूँ मुझमे प्राण नही
मैं रिक्त हो चुका की क्या उसे ध्यान नही,
मैं कोशिश करू तो भी क्या कोई अर्थ निकल पायेगा, 
या वक्त यूँ ही रेत सा फिसल जायेगा। 
मेरे मन के  खालीपन मे बुनी हुई है कविताएँ कई प्यारी, 
पर रिक्त कलम से कैसे लिख दूँ, 
ये प्रश्न बड़ा है मुझपर भारी, 
क्या भर जायेगी प्रेम की स्याही, स्वयं प्रेम  को लिखते लिखते?
या  चिन्न भिन्न हो जायेगा कौरा कागज लिखते- लिखते,
 मुझे उत्तर की अभिलाषा है, 
फिरसे लिख दूँ कोई कविता, 
ये रिक्त कलम की आशा है।।

©pisces_tales
  #रिक्त_कलम_और_स्याही