वो मदिरा सी बनी फिरती,मैं नशे में झूम लेता था। वो दुनिया थी- मेरी दुनिया, मैं उसमें घूम लेता था। इन्ही नादानियों का है , गवाह ये इश्क तो मेरा। वो जब पलकें झुकाती थी , मैं माथा चूम लेता था। वो जब सपनो में भी उसके, हम किरदार होते थे। वो उसके हक जताने पर भी ,हम हकदार होते थे। निशां उसके पड़े धुंधले , मुलाकातों की राहों में। मिलन की आस वो रखती तो, हम आसार होते थे। उसे जब देख लेता था , मैं उसकी बिखरी ज़ुल्फों में। रांझा बन के फिरता था , मैं खुद के स्वपन महलों में। ख़फ़ा मुझसे वो होती तो , लगे दुनिया मेरी रूठी । ये उसी रांझे की दुनिया है ,जो लिखता हीर ग़ज़लों में तेरी दौलत तेरी शोहरत , नही कुछ भी मैं चाहूंगा। मोहबत्त है मोहबत्त तू , मैं बस इकरार चाहूंगा। सबर का खेल ये तेरा , मेरी जां पर है बन आया। जो ग़र खुद को जिताता हूँ , तो तुझको हार जाऊँगा। विकास शर्मा #NojotoIIITM