मैं अक्श के समक्ष हूँ , अनेक जन है मेरे मन में , सब मे मेरा रूप है , किसको स्वीकार लूँ मैं , जो मेरा स्वरुप है , मैं खुद ही लड़ता अपने 'मैं' से , विशालकाय वृक्ष हूँ , मैं ही मेरा पक्ष हूँ ,