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मैं अक्श के समक्ष हूँ , अनेक जन है मेरे मन में , स

 मैं अक्श के समक्ष हूँ ,
अनेक जन है मेरे मन में ,
सब मे मेरा रूप है ,
किसको स्वीकार लूँ मैं ,
जो मेरा स्वरुप है ,
मैं खुद ही लड़ता अपने 'मैं' से ,
विशालकाय वृक्ष हूँ ,
मैं ही मेरा पक्ष हूँ ,
 मैं अक्श के समक्ष हूँ ,
अनेक जन है मेरे मन में ,
सब मे मेरा रूप है ,
किसको स्वीकार लूँ मैं ,
जो मेरा स्वरुप है ,
मैं खुद ही लड़ता अपने 'मैं' से ,
विशालकाय वृक्ष हूँ ,
मैं ही मेरा पक्ष हूँ ,
anuragsingh9989

ANURAG SINGH

New Creator

मैं अक्श के समक्ष हूँ , अनेक जन है मेरे मन में , सब मे मेरा रूप है , किसको स्वीकार लूँ मैं , जो मेरा स्वरुप है , मैं खुद ही लड़ता अपने 'मैं' से , विशालकाय वृक्ष हूँ , मैं ही मेरा पक्ष हूँ ,