तलवार, नौका और कविता में कोई अंतर नहीं होता। तलवार बनती है लोहे की लेकिन सहारा खोजती है लकड़ी का नौका लकड़ी से बनती है लेकिन लोहे का आसरा खोजती। कविता शब्दों से बनती है लेकिन लोहे और लकड़ी की ओट तलाशती वैसे लकड़ी, लोहे और शब्दों में कोई अंतर नहीं होता अंतर प्रयोग में लाने वालों की नज़र में होता है। ©Kaushal sharma #reading hindi poetry on life