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न हीं तुम और न ही मैं, हम दोनों में से कोई भी, यह

न हीं तुम और न ही मैं,
हम दोनों में से कोई भी,
यह जानता हैं कि
जब आखिरी बार हम बिछड़े थे,
तबसे हमारे पुनः संयोग तक,
हम दोनों ने कितनी यात्राएँ की है,
और कितनी बार जन्म लिए हैं ?

मगर यह तय है,
अगर आत्माएँ अजन्मी होती है, 
और प्रेम दो आत्माओं का एकीकरण,
तो हमारा यह मिलन निश्चित ही,
हमारे कई जन्मों की यात्राओं,
प्रार्थनाओं, तप एवं चीर-प्रतीक्षित उपासनाओं की सिद्धि है। 

यह भी तय है,
कि जब हम बिछड़े,
तुम्हारा कुछ हिस्सा मुझमें,
और मेरा कुछ हिस्सा तुममे,
शेष रह गया था।
और तबसे हमारे दुबारा मिलने तक,
मैं और तुम, हम दोनों ही,
अधुरे थे, अतृप्त थे।

हमारा यह संयोग,
महज एक इत्तेफाक नहीं है,
और न ही कोई इरादतन होनी,
यह हमारी आत्माओं की दीर्घ खोज है,
जो चली आ रही थी,
जन्म-जन्मांतरों से,
नियती की ढा़ल पर बहती हुई,
एक दूसरे की ओर,
अजनबी और अंजान राहों में,
अथक, अविराम, अनायास हीं।
ठीक उसी तरह,
जैसे हिमाद्रि से गिरकर सरित,
बहती है धरा की ढाल पर,
कलकल, बलखाती,
मगर इस बात से बेफिक्र,
कि कहीं किसी सिंधु का हृदय विकल है,
अनंतकाल से उसकी प्रतीक्षा में।

©Dr Keera #jubaa 

#bestfrnds
न हीं तुम और न ही मैं,
हम दोनों में से कोई भी,
यह जानता हैं कि
जब आखिरी बार हम बिछड़े थे,
तबसे हमारे पुनः संयोग तक,
हम दोनों ने कितनी यात्राएँ की है,
और कितनी बार जन्म लिए हैं ?

मगर यह तय है,
अगर आत्माएँ अजन्मी होती है, 
और प्रेम दो आत्माओं का एकीकरण,
तो हमारा यह मिलन निश्चित ही,
हमारे कई जन्मों की यात्राओं,
प्रार्थनाओं, तप एवं चीर-प्रतीक्षित उपासनाओं की सिद्धि है। 

यह भी तय है,
कि जब हम बिछड़े,
तुम्हारा कुछ हिस्सा मुझमें,
और मेरा कुछ हिस्सा तुममे,
शेष रह गया था।
और तबसे हमारे दुबारा मिलने तक,
मैं और तुम, हम दोनों ही,
अधुरे थे, अतृप्त थे।

हमारा यह संयोग,
महज एक इत्तेफाक नहीं है,
और न ही कोई इरादतन होनी,
यह हमारी आत्माओं की दीर्घ खोज है,
जो चली आ रही थी,
जन्म-जन्मांतरों से,
नियती की ढा़ल पर बहती हुई,
एक दूसरे की ओर,
अजनबी और अंजान राहों में,
अथक, अविराम, अनायास हीं।
ठीक उसी तरह,
जैसे हिमाद्रि से गिरकर सरित,
बहती है धरा की ढाल पर,
कलकल, बलखाती,
मगर इस बात से बेफिक्र,
कि कहीं किसी सिंधु का हृदय विकल है,
अनंतकाल से उसकी प्रतीक्षा में।

©Dr Keera #jubaa 

#bestfrnds