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क्यू आज़ वो फिर वो बुझे है जाने किस बात कि उलझन है

क्यू आज़ वो फिर वो बुझे है
जाने किस बात कि उलझन है 

करीब हू तेरे यकी कर
पलको को सुकू देने का काम तो कर

इन बेवज़ह उलझनो से 
थोड़ा आराम तो कर

बस इतना सा ही सही 
मुझ पर एहतराम तो कर

मुमकिन न सही साथ चलना तो क्या
धड़कनो में मचलता हू

रगो में चलता हू इतना ही सही
वफ़ा पर मेरी इत्मिनान तो है जाने किस बात कि उलझन में है
क्यू आज़ वो फिर वो बुझे है
जाने किस बात कि उलझन है 

करीब हू तेरे यकी कर
पलको को सुकू देने का काम तो कर

इन बेवज़ह उलझनो से 
थोड़ा आराम तो कर

बस इतना सा ही सही 
मुझ पर एहतराम तो कर

मुमकिन न सही साथ चलना तो क्या
धड़कनो में मचलता हू

रगो में चलता हू इतना ही सही
वफ़ा पर मेरी इत्मिनान तो है जाने किस बात कि उलझन में है
ankitmishra4564

Ankit Mishra

New Creator

जाने किस बात कि उलझन में है