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जलमग्न भूमि से है ज्वाला धधकती, चातकी इक बूँद को

जलमग्न भूमि से है ज्वाला धधकती, 
चातकी इक बूँद को तरसती, 
असहजता के सागर में, 
तड़प कर जी सको, तो आना। 

बन चुकी पपीहा की पुकार अब करुण क्रंदन, 
कोयल भी नहीं करती सुर से अभिनन्दन, 
इस नीरसता की आहत से, 
अभय हो, तो आना। 

विलीन हो रही सुरभि ललित पवन की, 
क्षय होती अभिलाषा तिमिर वन की, 
मरंद बिन मधुप बन सको, तो आना। 

भौम की बढ़ी मादकता, 
सब जलमग्न होने को आया, 
फिर भी दरारों के साथ, 
जी सको, तो आना। 

प्रतिच्छायित दानव भंवर में, 
कुपित-कुंठित, द्वेष सम पीड़ा में, 
लिए चिर-विषाद वियोग मन में, 
अस्तित्व का अट्हास कर सको, तो आना। 

लहरें दूषित उफान भर रहीं, 
नदियों की पवित्रता रही नहीं, 
भूगर्त हुई अट्टालिकाएं, वृक्ष हीं टिका रहा, 
बिन किनारे बह सको, तो आना।

©Krishna kant kumar #Nature 
#deforestation 
#climatechange 
#saveaearth
जलमग्न भूमि से है ज्वाला धधकती, 
चातकी इक बूँद को तरसती, 
असहजता के सागर में, 
तड़प कर जी सको, तो आना। 

बन चुकी पपीहा की पुकार अब करुण क्रंदन, 
कोयल भी नहीं करती सुर से अभिनन्दन, 
इस नीरसता की आहत से, 
अभय हो, तो आना। 

विलीन हो रही सुरभि ललित पवन की, 
क्षय होती अभिलाषा तिमिर वन की, 
मरंद बिन मधुप बन सको, तो आना। 

भौम की बढ़ी मादकता, 
सब जलमग्न होने को आया, 
फिर भी दरारों के साथ, 
जी सको, तो आना। 

प्रतिच्छायित दानव भंवर में, 
कुपित-कुंठित, द्वेष सम पीड़ा में, 
लिए चिर-विषाद वियोग मन में, 
अस्तित्व का अट्हास कर सको, तो आना। 

लहरें दूषित उफान भर रहीं, 
नदियों की पवित्रता रही नहीं, 
भूगर्त हुई अट्टालिकाएं, वृक्ष हीं टिका रहा, 
बिन किनारे बह सको, तो आना।

©Krishna kant kumar #Nature 
#deforestation 
#climatechange 
#saveaearth