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पसीने से तरबतर , मुँह उसका लाल था । एक तप्त

पसीने से तरबतर ,    मुँह     उसका लाल था ।
एक तप्त अग्नि की भांति ,तपा उसका भाल था ।
दो जून की रोटी  का ,फ़क़त  मन  मे सवाल था ।
बुभुक्षा परिवार की ना शांत करने का मलाल था ।
फिर बंद की भट्टी में जला,उसका  हर ख्याल था ।
बच्चों की मृत सी  सूरत से , वो फिर बेहाल था ।।

©poonam atrey
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