White मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए! नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े, खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ, पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी, धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर, सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे, वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो— इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए! मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? ~~~~~~~~~ ©Saurav Kumar #GoodMorning #copyright #SAD #Life #Life_experience #lifestyle #Love #follow #Share_Like_and_Comment