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प्रिये तुमसे ही थी जो भी मुहोब्बत थी वही मेरी जो आ

प्रिये तुमसे ही थी जो भी मुहोब्बत थी वही मेरी
जो आँखों से कही तुमसे मुहोब्बत थी वही मेरी

कमी इतनी रही मेरी कभी मुख से नहीं बोला
लिखा जो था हथेली पर मुहोब्बत थी वही मेरी

सुना लोगों से था तुमने कहा मुझको बहुत कुछ था
सुनी कानों से ना तुमने मुहोब्बत थी वही मेरी

बिछड़ कर जा बसे थे जब किसी जो गैर के घर मे
कहा तुमसे नहीं कुछ था मुहोब्बत थी वही मेरी

लगा था डर न कह दें हम तुम्हारे हमसफर से सब
हटाया फ़ोन से नम्बर मुहोब्बत थी वही मेरी

मिले तन्हा बहुत थे पल नियत को साफ ही रख्खा
भरोसे को रखा जीवित मुहोब्बत थी वही मेरी

रहा होगा गिला तुमको कभी बाहें नहीं खोली
वही बेड़ी सनातन की मुहोब्बत थी वही मेरी

©🎙️Sanjiv singh yadav *Deva* 🎙️
  मुहोब्बत थी वही मेरी
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