कदम कदम पर वो निशान बनाता चला गया। हर कदम पर कुछ नया कीर्तिमान बनाता चला गया। हमें लिखने को इतिहास का पन्ना बिछाता चला गया। हम खोजते रहे धरा पर वो गगन को चीरता चला गया। वो अपनी कामयाबी का सोपान बनाता चला गया। जमीन से जन्नत करीब दिखे ऐसी रोशनी जलाता चला गया। मुस्किल की दौर में थी दुनियां उसमें भी खुशियां लुटाता चला गया। गमो के आसूं से भी मोती टपके इसलिए समंदर को भी सिपी बनाता चला गया। जिसे हम घास फूस लता पत्तियां समझे उन्हें औषधियां बनाता चला गया। कैसे लिखे उसके इतिहास को वो तो इतिहास को भी इतिहास बनाता चला गया। ©Ajay Kumar Mishra दुनिया में।