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लगी आग ऐसी मर मर जलते रहें ज़ख्मों पे जख्म मिलते र

लगी आग ऐसी
मर मर जलते रहें
ज़ख्मों पे जख्म
मिलते रहे

जिस पे भरोसा था
खुद से भी ज़्यादा
ओ गैरों की तरह
हमसे मिले

क्या रस्मे रिवाजे 
 उनको मालूम ना था
वो मासूम बनकर
ज़मीं पे पड़े ही रहें

लाये थे दिल में
बसाकर किसी को
अब मालूम हुआ
जुदाई में उनके
बेचैन थे दिलजले
लगी आग ऐसी
मर मर जलते रहें
ज़ख्मों पे जख्म
मिलते रहे

जिस पे भरोसा था
खुद से भी ज़्यादा
ओ गैरों की तरह
हमसे मिले

क्या रस्मे रिवाजे 
 उनको मालूम ना था
वो मासूम बनकर
ज़मीं पे पड़े ही रहें

लाये थे दिल में
बसाकर किसी को
अब मालूम हुआ
जुदाई में उनके
बेचैन थे दिलजले