बड़े गुरूर से झेली थी सख्तियाँ हमने न अपने ज़ख्म गिने थे न पट्टियां हमने ये किसने ताजा हवाओं के पर कुतर डाले बड़ी उम्मीद से खोली थी खिड़कियां हमने # मेरी राहें