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बड़े गुरूर से झेली थी सख्तियाँ हमने न अपने ज़ख्म

बड़े गुरूर से झेली थी 
सख्तियाँ हमने
न अपने ज़ख्म गिने थे न
पट्टियां हमने
ये किसने ताजा हवाओं के
पर कुतर डाले
बड़ी उम्मीद से खोली थी
खिड़कियां हमने  # मेरी राहें
बड़े गुरूर से झेली थी 
सख्तियाँ हमने
न अपने ज़ख्म गिने थे न
पट्टियां हमने
ये किसने ताजा हवाओं के
पर कुतर डाले
बड़ी उम्मीद से खोली थी
खिड़कियां हमने  # मेरी राहें
mitsingh1165

अmit Singh

New Creator