#OpenPoetry इन आंखो को दिखाने आसमान चला आता हूं। खुद की खुद से कराने पहचान चला आता हूं।। ये जो दिल है मेरा इक गुमगश्ता मुसाफिर। इसको दिखाने इसका मकान चला आता हूं।। यूं तो भटक रहा हूं दरबदर खाहिशो के दौर में। बस यही जगह है जहां बे अरमान चला आता हूं।। जिस मंजिल तक पहुंचते उम्रें गुजर जाती है। मैं चार कदम चलकर श्मशान चला आता हूं।। Pawan M yadav 30-oct-2019 #OpenPoetry by #pawanmyadav