खेत हैं जहँ के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट कर एक दिन-बंगाल मेंः नहीं शायद होऊँगा मनुष्य तब, होउँगा अबाबील या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी धान की फसल पर जो कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक भरता पेंग, आऊँगा एक दिन ! बन कर शायद हंस मै किसी किशोरी काः घुँघरु लाल पैरों मेंः लौटकर आऊगा फिर