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खेत हैं जहँ के, बहती नदी के किनारे फिर आऊँगा लौट क

खेत हैं जहँ के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौट कर
एक दिन-बंगाल मेंः नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होउँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो 
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन  !
बन कर शायद हंस मै किसी किशोरी काः
घुँघरु लाल पैरों मेंः लौटकर आऊगा फिर
खेत हैं जहँ के, बहती नदी
के किनारे फिर आऊँगा लौट कर
एक दिन-बंगाल मेंः नहीं शायद
होऊँगा मनुष्य तब, होउँगा अबाबील
या फिर कौवा उस भोर का-फूटेगा नयी
धान की फसल पर जो 
कुहरे के पालने से कटहल की छाया तक
भरता पेंग, आऊँगा एक दिन  !
बन कर शायद हंस मै किसी किशोरी काः
घुँघरु लाल पैरों मेंः लौटकर आऊगा फिर