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हम चाहते कुछ हैं, होता कुछ और है, हम सोचते कुछ है

हम चाहते कुछ हैं,
होता कुछ और है, 
हम सोचते कुछ हैं,
होता कुछ और है...


इस चाहने और होने में
जिसका हाथ है
उसपे विश्वास रखना
वो ख्याली है खयालात समझने वाला
हमसे बेहतर हमारे हालात समझने वाला।। ये कहानी नहीं मगर लगेगी कहानी जैसी ही, इससे पहले कि मैं इस बात का ज़िक्र करूं बता दूं हमारी दो दुकान है दवा कि एक मैंने 1980 में शुरू की और दूसरी 1992 मे..और मैंने 1992 वाली दुकान को चुना अपने लिए और पुरानी दे दी छोटे भाई को।।
31मार्च 1997, रात के 12.30 बजे छोटे भाई का फोन आता है कि उसका एक्सीडेंट हो गया है और कमर में बहुत चोट आई है, उसे ला कर नर्सिंग होम में एडमिट कराया, और सुबह मैं दोनो दुकान की चाभी ले कर चल दिया क्योंकि में इन दिनों पैदल आया करता था शॉप परनमुझे घंटा भर लग जाता।
उस घंटे में मैं क्या सोच रहा था मुझे नहीं पता,इसी उड़ेध बन में मैंने कब अपनी दुकान ना जा कर क्यों भाई वाली दुकान खोली मुझे नहीं पता।
मोहाविष्ट सा मैं कर्ता जा रहा था, दोनो दुकानों के बीच महज़ 500 मीटर का ही फासला है,।
11 बजे मेरा एक मित्र दावा लेने आता है, एकदम से ख्याल आया कि इससे पूछूं क्या कर रहा है, पूछने पर उसने बताया कि उसकी job चली गई, medical representative हुआ करता था, और बिना कुछ सोचे समझे उसे अपनी दुकान की चाभियां और अपने यहां काम करने वाले लड़के को उसके साथ भेज देता हूं....
खैर ये तो प्रारंभ है विधाता के खेल का,भाई तो कमसे कम 4 महीने bed ridden ho गया back में फ्रेक्चर के कारण... मन ही मन ईश्वर को धन्यवादनकर्ता हूं कि में अपनी दुकान ना जा कर यहां पर आया और अजीत दावा लेने आया और उसके पास काम भी नहीं
*हे दयालु ईश्वर, तुम्हारी management को प्रणाम,
असल परीक्षा और खेल होना तो अभी बाकी था10 दिन बीते हमारा सब परिवार चंडीगढ़ गया हुआ था मैसी के बेटे की शादी में
हम चाहते कुछ हैं,
होता कुछ और है, 
हम सोचते कुछ हैं,
होता कुछ और है...


इस चाहने और होने में
जिसका हाथ है
उसपे विश्वास रखना
वो ख्याली है खयालात समझने वाला
हमसे बेहतर हमारे हालात समझने वाला।। ये कहानी नहीं मगर लगेगी कहानी जैसी ही, इससे पहले कि मैं इस बात का ज़िक्र करूं बता दूं हमारी दो दुकान है दवा कि एक मैंने 1980 में शुरू की और दूसरी 1992 मे..और मैंने 1992 वाली दुकान को चुना अपने लिए और पुरानी दे दी छोटे भाई को।।
31मार्च 1997, रात के 12.30 बजे छोटे भाई का फोन आता है कि उसका एक्सीडेंट हो गया है और कमर में बहुत चोट आई है, उसे ला कर नर्सिंग होम में एडमिट कराया, और सुबह मैं दोनो दुकान की चाभी ले कर चल दिया क्योंकि में इन दिनों पैदल आया करता था शॉप परनमुझे घंटा भर लग जाता।
उस घंटे में मैं क्या सोच रहा था मुझे नहीं पता,इसी उड़ेध बन में मैंने कब अपनी दुकान ना जा कर क्यों भाई वाली दुकान खोली मुझे नहीं पता।
मोहाविष्ट सा मैं कर्ता जा रहा था, दोनो दुकानों के बीच महज़ 500 मीटर का ही फासला है,।
11 बजे मेरा एक मित्र दावा लेने आता है, एकदम से ख्याल आया कि इससे पूछूं क्या कर रहा है, पूछने पर उसने बताया कि उसकी job चली गई, medical representative हुआ करता था, और बिना कुछ सोचे समझे उसे अपनी दुकान की चाभियां और अपने यहां काम करने वाले लड़के को उसके साथ भेज देता हूं....
खैर ये तो प्रारंभ है विधाता के खेल का,भाई तो कमसे कम 4 महीने bed ridden ho गया back में फ्रेक्चर के कारण... मन ही मन ईश्वर को धन्यवादनकर्ता हूं कि में अपनी दुकान ना जा कर यहां पर आया और अजीत दावा लेने आया और उसके पास काम भी नहीं
*हे दयालु ईश्वर, तुम्हारी management को प्रणाम,
असल परीक्षा और खेल होना तो अभी बाकी था10 दिन बीते हमारा सब परिवार चंडीगढ़ गया हुआ था मैसी के बेटे की शादी में