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ग़ज़ल..... एक ही घर में रह कर मुलाकात कम होने लगी

ग़ज़ल.....

एक ही घर में रह कर मुलाकात कम होने लगी है
इन दिनों एक दूसरे से बात कम होने लगा है

ना किसी से अब कोई रुठता है यहां
मानाने के अब रिवाज़ कम होने लगें हैं

खिलते नहीं चेहरे अब चाय की चुस्कियों से
अब संग बैठ कर बातें कम होने लगी है

भाग रहा है वक्त अपनी रफ़्तार से यहां
मसरूफियत यहां ज्यादा फुर्सत कम होने लगी है

रिश्तों का दर्द आंखों में शर्म का एहसास कहां
दिलों में अब अपनों का दर्द कम होने लगा है

©Ishrat Tauheed
  #phool
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Ishrat Tauheed

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