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ये दास्ता कुछ यूं खत्म होगी सोचा ना था, बेआबरू फिर

ये दास्ता कुछ यूं खत्म होगी सोचा ना था,
बेआबरू फिर मोहबत होगी सोचा ना था,
किस्से तो पढ़े थे इशक़ में जुदाई के लेकिन,
एक किस्सा मेरा भी होगा सोचा ना था।

कहीं दूर जब आंखे ठहर जाती है,
कभी तन्हाई जब थोड़ा सताती है,
बिखर जाती है उम्मीद आने वाले कल की,
ये रुसवाई इतनी लंबी होगी सोचा ना था।

ये शीशा था या ख्वाब बता मुझको,
गर हुई खता तो दे सजा मुझको,
यूँ  छोड़ कर क्यों जाता है बीच राह ऐसे,
तू बदलेगा रास्ता कभी सोचा ना था।

तू जनता है मैं तेरे बिन तन्हा हूँ,
बिना गलती के ही  बहुत शर्मिंदा हूँ,
मेरा हाल तू शायद सुन भी ना पाए,
ये जख्म इतना गहरा होगा सोचा ना था। #sochanatha
ये दास्ता कुछ यूं खत्म होगी सोचा ना था,
बेआबरू फिर मोहबत होगी सोचा ना था,
किस्से तो पढ़े थे इशक़ में जुदाई के लेकिन,
एक किस्सा मेरा भी होगा सोचा ना था।

कहीं दूर जब आंखे ठहर जाती है,
कभी तन्हाई जब थोड़ा सताती है,
बिखर जाती है उम्मीद आने वाले कल की,
ये रुसवाई इतनी लंबी होगी सोचा ना था।

ये शीशा था या ख्वाब बता मुझको,
गर हुई खता तो दे सजा मुझको,
यूँ  छोड़ कर क्यों जाता है बीच राह ऐसे,
तू बदलेगा रास्ता कभी सोचा ना था।

तू जनता है मैं तेरे बिन तन्हा हूँ,
बिना गलती के ही  बहुत शर्मिंदा हूँ,
मेरा हाल तू शायद सुन भी ना पाए,
ये जख्म इतना गहरा होगा सोचा ना था। #sochanatha