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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।। भावार्थ: महज इच्छा रखने भर से कोई कार्य पूरा नहीं होता, बल्कि उसके लिए उद्यम अर्थात मेहनत करना जरूरी होता है। ठीक उसी तरह जैसे शेर के मुंह में सोते हुए हिरण खुद-ब-खुद नहीं आ जाता, बल्कि उसे शिकार करने के लिए परिश्रम करना होता है।

©Ganesh joshi
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