मुझे अब जाना होगा, मुझे अब जाना होगा.. अगर मगर अब कुछ नहीं, कुछ तो बनके दिखाना होगा, मुझे अब... कर्तव्य पथ से भटक गए, न जाने किस किसमें अटक गए.. मूर्छित मन को त्याग कर, कर्तव्यनिष्ठ बन जाना होगा, मुझे अब... मन कुंठित है सहे शूल -भाल, हंसकर ये भी सह जाना होगा.. उम्मीदों के ठहरे आंचल, छोड़ आगे बढ़ जाना होगा, मुझे अब... है धैर्य परीक्षा है ज्ञात तुम्हें, फिर मिलें कितने भी आघात तुम्हें.. अग्नि में लोहा जैसे तपता है, वैसे ही तप जाना होगा, मुझे अब...! ©shivam chandra #aim #decipline #obsession my own written poem