कई बार सोचा कुछ ऎसा लिखूँ, जिसे पढ़ तू समझे मेरी व्यथा, मग़र कलम थामना व्यर्थ हो जाए, मैं खुदको लेता अन्यथा। कागज़ पे स्याही अस्पष्ट नहीं, कलम खुद में व्यूह रचे है, मन की पीड़ा मन में रह जाए, इस चक्रव्यूह से कौन बचे है। काफी कुछ सुन्ना है सुनाना है, तुझे लिखना है कहना है, मग़र इन लाचार सपनों को, अपने कारावास में रहना है। स्याही ने अश्क़ों से गठबंधन कर लिया, हैरान हूँ देख इसे, जो भार मन में ढोता फिर रहा, कहिं दूर आऊँ फेंक इसे। मग़र अफसोस मेरे साथ मैं खुद नही, फ़िर खुशियाँ क्या होंगे, नींद में चल रहा ख्वाबों की दुनिया में, अब दर्द न बयाँ होंगे। #लिखतेमिटाते #ख़्वाबकीपरवरिश #yqdidi #yqquotes #yqtales #love #yostowrimo #poetry