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** International Earth Day** ये हरी - भरी! जल में

** International Earth Day**

ये हरी - भरी! जल में डूबी, भूरी मटियाली
हिम चादर ओढ़ चुनरिया झूम रही मतवाली

है ऊंचे ऊंचे पर्वत माला, कहीं  गहरी खाड़ी
घूम रही है धरा धूरी पर पहने सतरंगी साड़ी

अतुल ! अनुपम ! रूप धरा का ! जैसे दुल्हन
देख ये यौवन!  हुआ रे ! हर्षित सूर्य का मन !

पुलकित पुलकित था अंग-अंग मुस्कान बिखरे
अरे ! धरा थी ऐसी सुन्दर  कभी हर सांझ सवेरे

आज धरा है विचलित ! उसका रूप है विकृत !
धरा की आंख में आंसू झर-झर, हृदय अतृप्त !

धरा दुखी है, उबल रही है , पिघल रही है
तिल तिल करके प्रतिदिन धरा ये जल रही है.

जंगल के जंगल कट छट कर शहर बने है
उद्योग प्रदूषण धरा के लिए जहर बने है

असंख्य प्राणी की ये माता, जिनको धरा ने पाला,
हाय ! रे ! मानव! उस धरा को तूने दूषित कर डाला


***धीरज कुमार***

©धीरज कुमार #EarthDay2021
** International Earth Day**

ये हरी - भरी! जल में डूबी, भूरी मटियाली
हिम चादर ओढ़ चुनरिया झूम रही मतवाली

है ऊंचे ऊंचे पर्वत माला, कहीं  गहरी खाड़ी
घूम रही है धरा धूरी पर पहने सतरंगी साड़ी

अतुल ! अनुपम ! रूप धरा का ! जैसे दुल्हन
देख ये यौवन!  हुआ रे ! हर्षित सूर्य का मन !

पुलकित पुलकित था अंग-अंग मुस्कान बिखरे
अरे ! धरा थी ऐसी सुन्दर  कभी हर सांझ सवेरे

आज धरा है विचलित ! उसका रूप है विकृत !
धरा की आंख में आंसू झर-झर, हृदय अतृप्त !

धरा दुखी है, उबल रही है , पिघल रही है
तिल तिल करके प्रतिदिन धरा ये जल रही है.

जंगल के जंगल कट छट कर शहर बने है
उद्योग प्रदूषण धरा के लिए जहर बने है

असंख्य प्राणी की ये माता, जिनको धरा ने पाला,
हाय ! रे ! मानव! उस धरा को तूने दूषित कर डाला


***धीरज कुमार***

©धीरज कुमार #EarthDay2021