खुद लड़ते हैं मौसम से, फिर भी रहते हैं हौसले में। धूप सहें या ठंडी रातें, हर हाल खड़े अपने साए में। पंछियों को दें आशियाना, फल लुटाएं हर एक भूख को। जड़ें जमाएं मिट्टी की खातिर, सिखा दें सब्र हर रुख को। कटते हैं, गिरते हैं, फिर उगते हैं, हर आंधी में अपने को संभालते हैं। ज़मीन से जुड़े रहकर भी, आसमान को छूने की दुआ करते हैं। ©Balwant Mehta #Blacktree