तेरे औंझे में लटकी हुई है गुफ्तगू सकूं की, ये कमबख्त उम्र का पड़ाव भी तो देख *हिमांश*, जिम्मेदारियों का बोझ लिए, यहां दर-बदर उम्र भकट कर बीत जाती हैं..!! हौसला कम नहीं यहां किसी भी शख्स में, यहां सब स्वयं को आलीशान बनाने में लगे हैं, कमबख्त वक़्त से गुज़ारिशें करते-करते, उसकी आजमाइशों में... हताश होकर उम्र ख़ाक हो जाती हैं..!! - हिमांश #Morning वक़्त से लड़ते लड़ते...