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मै अकेली होकर खुद की सहेली हो गई हूंँ। जाने क्या

मै अकेली होकर 
खुद की सहेली हो गई हूंँ।

जाने क्या चाहती हूंँ खुद से
बारम्बार सवाल खुद से दोहराती हूंँ। 

मैं झल्ली जवाब न पाकर झुंँझला जाती हूँ 
खुद से ही रूष्ट होकर खुद को मनाती हूँ। 

हथेली की टेढी मेढी लकीरें मुझे चिढाती है
जाने ये जिन्दगी मुझसे क्या चाहती है? 

रहती भीड़ में हूंँ, दिखती अलबेली हूँ 
मैं खुद में ही एक अनसुलझी पहेली हूंँ

©Shilpa Modi
  #तन्हाईयाँ#गुफ़्तगू