विडम्बना है, चौड़ी सड़कें, तेज़ गाड़ियाँ, गगनचुंबी ईमारतों की, फ़टी कमीज़ें, फ़टी एड़ियां , उभरी हड्डियाँ जिस्मों की। देश बदल रहा देखो , लेकिन दशा वही मज़दूरों की। मंत्री आए, फीता काटा, लाल बत्ती गाड़ी से चले गए, पसीने से तर-ब-तर वो, कामगार सूख के कांटे हो गए। मिले शिक्षा, रुके कुपोषण, सरकारी महकमे बनते गए कप-प्लेट धोते वो बच्चे, कूड़ों के ढेर में कब के सो गए। शहर बदले, सड़कें बदलीं, जेब भरी सरकारों की बदली नहीं आज भी देखो, दशा वही मज़दूरों की। देश बदल रहा देखो , लेकिन दशा वही मज़दूरों की। राजनीतिक रोटियां सेंकने को,सियासती नशे में चूर हो गए कमर में शिशु बाँध काम करने को मजदूर, आज मजबूर हो गए। मज़दूरी करते करते कितने माँ-बाप भगवान को प्यारे हो गए, कलम छोड़, उनके बच्चे कुल्हाड़ियों के साथी हो गए। शहर बदले, सड़कें बदलीं, जेब भरी सरकारों की बदली नहीं आज भी देखो, दशा वही मज़दूरों की। देश बदल रहा देखो , लेकिन दशा वही मज़दूरों की। #worldlabourday दशा वही मज़दूरों की #mazdoor