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सबको अपनें-अपनें कर्म मिले है, कर्म करना भी तो उसक

सबको अपनें-अपनें कर्म मिले है,
कर्म करना भी तो उसकी भक्ति है,
फिर भी कर्म को त्याग कर क्यों करता,
क्यूं करता फिरता दिखावे की भक्ति है,
कर्म की राह में सदैव वो विराजमान है,
महिमा उस परब्रहम की अपरम्पार है,
कर्म में ही समायी है मुक्ति और शक्ति।।

©Varun Raj Dhalotra
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